भारत में प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर चलने वाली एक ग्राम्य-जीवनशैली की परंपरा रही है | यह जीवनशैली मानव के सर्वांगीण विकास में सहायक है | लेकिन आज ग्राम्य – जीवनशैली की यह भारतीय परंपरा बिखरती जा रही है जिसके कारण मानव का सर्वांगीण विकास प्रभावित हुआ है | इस परंपरा को पुनः नवजीवन प्रदान करने के लिए श्री रामकृष्ण ट्रस्ट प्रयासरत है |

इस दिशा में श्री रामकृष्ण ट्रस्ट के द्वारा किये जा रहे प्रयासों के मुख्यतः 12 आयाम हैं | जिसमें ग्रामीण अर्थव्यवस्था के उत्थान के लिए ग्रामोद्योग एक मुख्य  आयाम है | ग्रामोद्योग के अंतर्गत वैसे उद्योग आते हैं जिनमें स्थानीय व ग्रामीण स्तर पर ही मानव जीवन की आधारभूत आवश्यकताओं से संबंधित वस्तुओं का उत्पादन होता है |

ट्रस्ट का ग्रामोद्योग के सम्बन्ध में दृष्टिकोण है –

“समृद्ध अर्थोपार्जन की व्यवस्था”

“कम लागत का उत्पादन केंद्र”

“प्रकृति के संसाधनों का कम-से-कम उपयोग करने वाला उत्पादन केंद्र”

“सक्षम व सीमित-सक्षम लोगों को रोजगार देने वाली व्यवस्था”

ग्रामोद्योग के माध्यम से ही एक गांव पुनः आत्मनिर्भर व समृद्ध बन सकता है | वास्तव में, भारत की प्राचीन अर्थव्यवस्था के सुदृढ़ होने का सबसे बड़ा कारण उसका मजबूत ग्रामोद्योग क्षेत्र था | अतः आज यह क्षेत्र पुनः मजबूत बने इसके लिए हमारे ट्रस्ट ने अपने परिसर में ग्रामोद्योग का एक सुव्यवस्थित मॉडल विकसित किया है | यह मॉडल इस समझ पर आधारित है कि हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था में उद्योग (ग्रामोद्योग) मुख्यतः कृषि व पशुपालन पर आधारित थे | साथ ही ये एक – दूसरे के पूरक भी थे |

ग्रामोद्योग के अंतर्गत हमने गाय के गोबर – गोमूत्र से 40 – 50 उत्पाद तैयार किए हैं | इनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण है – पंचगव्य आधारित औषधियां | हम पंचगव्य आधारित दो तरह की औषधियों का निर्माण करते हैं | एक, जो विभिन्न बीमारियों से रोकथाम (Prevention) में सहायक हो | दूसरा, जो बीमारियों को ठीक करने में उपयोगी हो |

रोकथाम (Prevention) वाली औषधियों के अंतर्गत मुख्यतः गोमूत्र अर्क में अलग-अलग औषधियों को मिलाकर इनका अर्क बनाया जाता है | ये शरीर के लिए आवश्यक विभिन्न तत्वों की कमी को पूरा करते हैं | साथ ही, ये हमारे वात, पित्त व कफ को सम रखते हैं | बीमारियों के इलाज के लिए जिन औषधियों का हम निर्माण करते हैं उनमें मुख्यतः घनवटी, गौ – घृत का पंचगव्य नस्य, कई प्रकार के मलहम व तेल तथा कुछ चूर्ण हैं |

आरोग्य को ध्यान में रखकर एक लघु औषधालय व चिकित्सा के लिए एक वैद्य की व्यवस्था भी ग्रामोद्योग परिसर में की गई है |

हमने गोबर-गोमूत्र आधारित दैनिक आवश्यकता की विभिन्न वस्तुओं जैसे – साबुन, शैंपू, दंत मंजन, केश तेल, मालिश तेल, धूपबत्ती, गोनाइल, मोबाइल रेडियेशन चिप, फेस पैक, बर्तन धोने का पाउडर, गोबर के उपले आदि के निर्माण का भी केंद्र ग्रामोद्योग परिसर में विकसित किया है |

गोबर व गौमूत्र का उपयोग कर हम प्राकृतिक कृषि में उपयोगी विभिन्न तरह के खाद व प्राकृतिक कीटनाशकों का निर्माण करते हैं | ऊर्जा स्वावलंबन के लिए ट्रस्ट के परिसर में गोबर गैस प्लांट लगाया गया है |

गृह निर्माण के लिए प्रकृति-अनुकूल (Eco – Friendly) वैदिक – सीमेंट बनाया गया है जिसे हम ‘गोमय लेपन’ भी कहते हैं | फर्श पर इस गोमय लेपन का उपयोग कैसे हो उसका भी तरीका विकसित किया गया है | ट्रस्ट परिसर में घर बनाने के लिए इस वैदिक सीमेंट व स्थानीय प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग किया जाता है | इसी प्रकार हमारे द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर प्राकृतिक पेंट व ऑर्गेनिक रंगों का भी निर्माण किया गया है |

इसके अलावा ग्रामोउद्योग परिसर में एक कृषि उत्पाद मूल्यवर्धन केंद्र भी बनाया गया है | यहां अनाजों की सफाई, वर्गीकरण (Grading), पिसाई, पैकिंग आदि प्रक्रियाओं के लिए छोटे-छोटे यन्त्र लगाये गए हैं | कच्ची घानी तेल के लिए एक मशीन लगाई गई है | हमारे यहां पशु आहार का भी निर्माण किया जाता है | ग्रामोद्योग से उत्पादित व मूल्यवर्धित वस्तुएं ट्रस्ट के स्वाबलंबन लक्ष्य में सहायक हैं |

प्रशिक्षण

आज गांवों में ग्रामोद्योग को बढ़ावा देना अत्यंत आवश्यक है, ताकि ग्रामीण भारत का  युवक स्व-रोजगार करने में सक्षम हो | अतः ट्रस्ट, किसानों व नवयुवकों को गाय के गोबर – गौमूत्र पर आधारित उत्पाद बनाने के लिए प्रोत्साहित करता है व इनका निःशुल्क प्रशिक्षण देता है |

ज्ञान बेचना नहीं चाहिए और सीखने की प्रक्रिया काम करके होती है | अतः संस्था में ‘काम करके सीखने’ की व्यवस्था रखी गई है | इस प्रकार प्रशिक्षणार्थी सीखे ज्ञान का प्रशिक्षण काल में ही उपयोग भी करता है | प्रशिक्षण के दौरान यहां भोजन व आवास की निःशुल्क व्यवस्था रहती है |

कोई गांव किस प्रकार शहरी निर्भरता से मुक्त हो, कैसे ग्रामीण उत्पादक वर्ग अपने उत्पादों के मूल्यवर्धन से स्वाबलंबी बनें, कैसे गाँव के लोगों को शुद्ध- सात्विक व सस्ता उत्पाद मिले इसका भी व्यावहारिक समाधान हमारे ट्रस्ट में दिया जाता है |  

ग्राम स्वावलंबन

यह सभी प्रशिक्षण गांव को स्वाबलंबी बनाने के लिए दिया जाता है | गांवों में पहले 80-90% तक स्वाबलंबन होता था | हम श्री रामकृष्ण ट्रस्ट में अपने क्रियाकलापों के माध्यम से यह समझने का प्रयत्न कर रहे हैं कि इस ग्राम स्वावलंबन का आधार क्या था, ग्राम में किन-किन चीजों का उत्पादन होता था तथा उत्पादन-प्रक्रिया क्या थी ? हम इस बात पर भी चिंतन कर रहे हैं कि ऐसे ग्राम स्वावलंबन की स्थिति आज क्यों नहीं प्राप्त की जा सकती, जबकि आज हमारे पास आधुनिक तकनीक व पर्याप्त संसाधन दोनों हैं ?

हमारे द्वारा किए जा रहे ग्रामोद्योग का कार्य गाँव से हो रहे पलायन जैसे एक गंभीर सामाजिक मुद्दे से भी सम्बंधित है | यदि गाँव के लोग जैविक कृषि करें, गौ – पालन व गौ-संवर्धन करें तथा कृषि व गांव आधारित ग्रामोद्योग को अपनाएं तो गांवों से पलायन की समस्या का स्थाई समाधान हो सकता है |

ग्रामोद्योग के अंतर्गत वस्तुओं के उत्पादन के लिए हम कम लागत व कम स्थान घेरने वाले छोटे-छोटे यंत्रों का प्रयोग करते हैं | वास्तव में यही हमारी हजारों वर्षों की परंपरागत ग्रामोद्योग पद्धति रही है और यही पद्धति एक ग्राम को स्वावलंबी भी बनाती है |

इस प्रकार श्री रामकृष्ण ट्रस्ट अपने ग्रामोद्योग आयाम के माध्यम से इस प्रयास में लगा है कि घर की दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति ग्रामोद्योग के माध्यम से गाँव में ही हो व गाँव के लोगों को गाँव में ही रोजगार मिले |