भारत में व्यक्ति की अर्थोपार्जन संबंधी आवश्यकता – पूर्ति के लिए परंपरागत रूप से चार व्यावसायिक आधार रहे हैं – प्राकृतिक कृषि, पशुपालन/गौपालन, ग्राम उद्योग व हस्तकला | इसमें हस्तकला का एक विशिष्ट स्थान है क्योंकि हस्तकला जहां एक ओर आजीविका का साधन है तो दूसरी ओर यह व्यक्ति की आंतरिक कला की अभिव्यक्ति भी है | व्यक्ति की आंतरिक कला की अभिव्यक्ति होने के कारण यह उसके आनंद के स्तर को भी बढ़ाती है | हस्तकला की इस विशेषता के कारण यह हमेशा से हमारी ग्रामीण व्यवस्था का एक अभिन्न अंग रही है |
इस बात को ध्यान में रखते हुए श्री रामकृष्ण ट्रस्ट ने जहां लुहार, सुथार, कुम्हार, मकान निर्माण संबंधी कड़िया काम जैसे परंपरागत हस्त कारीगरों-शिल्पकारों को अपने ग्राम स्वावलंबन के प्रयास का अभिन्न अंग मानते हुए उन्हें ट्रस्ट परिसर में स्थान दिया है, वहीं दूसरी ओर हमारी संस्था के नारे ‘हर -घर गोबर, घर – घर गोबर’ को साकार करने के लिए ‘गोबरक्राफ्ट’ नाम से एक नए हस्तकला आयाम को भी जोड़ा है | गोबरक्राफ्ट के अंतर्गत ट्रस्ट गोबर से कई उपयोगी व कलात्मक वस्तुओं का निर्माण करता है जैसे – तोरण, वॉलपीस, दीवाल घड़ी, टेबल घड़ी, मोमेंटो, दीया, राखी, मूर्तियां, पूजाथाली, यज्ञ कुंड, खिलौने, गमले आदि | ये उत्पाद काफी लोकप्रिय भी हो रहे हैं | गोबर से निर्मित इन चीजों की उपलब्धता से जहां घर के सजावट के लिए या अन्य कार्यों के लिए लोगों को प्लास्टिक, कांच, सीमेंट आदि की वस्तुओं का एक मजबूत विकल्प मिला है वहीं दूसरी ओर आज की पीढ़ी के सामने ‘गोमय वसते लक्ष्मी’ जैसे हमारी संस्कृति में प्रचलित वाक्य भी सत्य सिद्ध हुए हैं व इससे गौपालन के प्रति उत्साह बढ़ा है |