श्री रामकृष्ण ट्रस्ट में परंपरागत जीवनशैली के विविध आयाम यथा प्राकृतिक कृषि, गौ पालन, ग्राम उद्योग, हस्तकला आदि पर कार्य हो रहा है | इसके माध्यम से हमने पंचगव्य आधारित औषधि सहित दैनिक उपयोग वाले 100 से अधिक उत्पादन बनाए हैं | हमारे इस कार्य में स्वावलंबन का आयाम समाहित है |
इसके अलावा परंपरागत जीवन व संस्कृति को नए रूप में ढालकर आज के अनुकूल उसे बनाने तथा आज उनकी स्वीकृति हो इसके लिए भी हम प्रयास कर रहे हैं |
आज परंपरागत जीवनशैली का प्रसार कैसे हो यह भी अनुसंधान का विषय है अतः इसके लिए भी हम प्रयासरत हैं | इस दिशा में हम चिंतन कर रहे हैं कि परंपरागत जीवनशैली की कुछ बातों को आधुनिक जीवनशैली में कैसे जोड़ा जाए | प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर जीवन जीने की परंपरागत व्यवस्था को आज के जीवन में कैसे डाला जाए | हम इन चीजों पर कई व्यावहारिक प्रयोग अपने संस्था में कर रहे हैं | इसके लिए हमने यहां प्राकृतिक व स्थानीय संसाधनों का प्रयोग कर परंपरागत आवास बनाए हैं, आधुनिक कृषि की पद्धति में बदलाव करके गौ आधारित प्राकृतिक कृषि कर रहे हैं, गौ पालन में दूध के स्थान पर गोबर-गोमूत्र को मुख्य उत्पाद मानकर उसके व्यावसायिक उपयोग पर बल दे रहे हैं | इसी प्रकार हस्तकला, ग्राम उद्योग सहित कई क्षेत्रों में ग्राम स्वावलंबन व परंपरागत जीवन शैली को ध्यान में रखकर हमने कई नवीन प्रयोग किए हैं |
हमारा मानना है कि परंपरागत जीवनशैली संबंधी श्री रामकृष्ण ट्रस्ट के कार्य व हमारे द्वारा ग्रामीण आर्थिक स्वावलंबन को ध्यान में रखकर बनाए गए उत्पादों को बनाने की कला व विधियां सिर्फ हम तक सीमित ना रहे बल्कि इसका प्रचार-प्रसार हो | हम मानते हैं कि केवल हमारे ट्रस्ट की प्रगति ही पर्याप्त नहीं है हमारी प्रगति समाज की मानसिकता व समझ में सकारात्मक बदलाव लाए तभी ग्राम स्वावलंबन जैसे आदर्श धरातल पर उतर सकेंगे |
अतः लोगों को इस विचार व कार्य से जोड़ने के लिए हमने प्रशिक्षण की व्यवस्था रखी है |
यहां होने वाले प्रशिक्षणों को मुख्यतः तीन वर्गों में रखा जा सकता है-
- गौ आधारित प्राकृतिक कृषि प्रशिक्षण
इसके लिए संस्था द्वारा प्रति माह 12, 13, 14 तारीख को तीन दिवसीय शिविर का आयोजन किया जाता है | वर्ष 2011 से मई 2024 तक इस तरह के 102 शिविरों का आयोजन किया जा चुका है, जिसमें अभी तक लगभग 4000 लोगों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया है |
इस प्रशिक्षण शिविर में हम प्राकृतिक खेती के सिद्धांतों, प्रकृति स्वयं कैसे खेती करती है व प्रकृतिक खेती संबंधी अन्य अवधारणाओं को विस्तार से समझाते हैं | इसके अलावा मिट्टी की पहचान, मिट्टी के उर्वरीकरण, कीट प्रबंधन, कृषि उत्पादों का विपणन (Marketing) व मूल्य संवर्धन (Value Addition), औषधि खेती व किचन गार्डन पर मार्गदर्शन, प्राकृतिक उर्वरक व कीटनाशक तैयार करने की विधियां बताई जाती हैं | प्रशिक्षणार्थियों के प्राकृतिक कृषि व संबंधित विषयों पर जो शंका रहती है उसका भी समाधान किया जाता है | यह शिविर भोजन व ठहरने की सुविधा सहित पूर्णतः निःशुल्क है |
प्रशिक्षण के तीन दिनों के दौरान प्रशिक्षणार्थी ग्राम स्वावलंबन से संबंधित श्री रामकृष्ण ट्रस्ट के विभिन्न कार्य आयामों को भी देखते समझते हैं और आज इस तरह के प्रकल्प व्यावहारिक तौर पर कैसे चलाए जा सकते हैं उन्हें इसका भी अनुभव होता है | इसी प्रकार देश भर से प्रशिक्षण के लिए आए समान विचार वाले लोगों को यहाँ एक-दूसरे से मिलने का मौका भी मिलता है |
2) व्यावहारिक प्रशिक्षण
हमारे किसी भी कार्य आयाम जैसे प्राकृतिक कृषि, गौ पालन, ग्राम उद्योग आदि से संबंधित कार्यों यथा पंचगव्य, गोबर क्राफ्ट, गोमय लेपन, प्राकृतिक उर्वरक व कीटनाशक, प्राकृतिक पेंट, गौशाला प्रबंधन आदि के प्रशिक्षण के लिए कोई भी व्यक्ति वर्ष के 365 दिन कभी भी यहां आ सकता है | इस प्रकार हमारी संस्था 365 दिनों के प्रशिक्षण केंद्र के रूप में भी कार्यरत है | यहाँ प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए किसी शैक्षणिक योग्यता की आवश्यकता नहीं है | आयु की भी कोई सीमा नहीं है | सीखने के लिए आने वाले व्यक्ति पर यह निर्भर करता है कि उसे क्या सीखना है तथा कितने समय तक यहाँ रहकर सीखना है |
हमारे वरिष्ठ नियमित कर्मचारी ही प्रशिक्षक के तौर पर भी काम करते हैं | अतः जो सीखने के उद्देश्य से यहां आते हैं उन्हें सैद्धांतिक जानकारी के साथ-साथ पर्याप्त व्यवहारिक ज्ञान भी प्राप्त होता है | प्रशिक्षणार्थी अपनी सुविधा के हिसाब से अपने प्रशिक्षकों के साथ रहकर काम करके सीखते हैं | सीखने-सिखाने की यह विधि कम समय में 100% ज्ञान देने वाली है | इस विधि से प्रशिक्षित व्यक्ति सीखे ज्ञान का उपयोग अपने कार्य क्षेत्र में आसानी से कर सकता है क्योंकि सहज-सरल तरीके से यह ज्ञान उसको मिलता है | दूसरी ओर प्रशिक्षणार्थी सीखने के दौरान जो श्रम करता है उसका लाभ संस्था को प्राप्त होता है | यहां आकर प्रशिक्षण प्राप्त करना बिल्कुल निःशुल्क है | प्रशिक्षण काल में भोजन व रहने की व्यवस्था भी निःशुल्क है | लेकिन ‘काम करके सीखने’ की इस परंपरागत व्यवस्था में चूँकि प्रशिक्षणार्थी का श्रम संस्था को मिलता है अतः संस्था पर भी अतिरिक्त आर्थिक बोझ नहीं पड़ता |
सीखने-सिखाने की यह व्यवस्था हमारे परिवार व समाज में परंपरागत रूप से विद्यमान थी | आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में बेटा अपने पिता के साथ अपने परंपरागत कार्यों को तथा बेटी अपनी माता के साथ अपने गृह कार्यों व कलात्मक कार्यों को सहजता से इसी प्रकार से सिखती है | अर्थात, परिवार भाव से सहज तरीके से सीखने-सिखाने की व्यवस्था हमारी परंपरा का हिस्सा है | हमने लोगों को प्रशिक्षित करने के लिए भी इसी पद्धति को अपनाया है | संस्था की ओर से अभी तक लगभग 2000 लोगों ने इस पद्धति के माध्यम से व्यावहारिक प्रशिक्षण प्राप्त किया है |
- मार्गदर्शन
प्रशिक्षण का तीसरा वर्गीकरण मार्गदर्शन के रूप में है | इसके अंतर्गत कोई भी व्यक्ति कुछ समय के लिए संस्था में आकर यहां से हमारे किसी भी कार्य- आयाम के संबंध में मार्गदर्शन प्राप्त कर सकता है | यहां की व्यवस्थाओं को देखकर भी सीख सकता है व प्रेरित हो सकता है | इन विषयों से संबंधित उसके जो कुछ प्रश्न हैं उसका समाधान भी पा सकता है | मार्गदर्शन की इस पद्धति से भी लगभग 8 से 10 हजार लोगों ने ग्राम स्वावलंबन व परंपरागत जीवन शैली के महत्व को समझा है |
ऊपर वर्णित विविध प्रकार के प्रशिक्षणों के अलावा भी शिक्षण-प्रशिक्षण के कई आयाम हमारे यहां संचालित होते हैं –
- छात्र इंटर्नशिप – हम जिन मुद्दों पर कार्य कर रहे हैं उससे संबंधित गुजरात के कई प्रसिद्ध कॉलेजों की इंटर्नशिप भी हमारे यहां करवाई जाती है | हमारे साथ संबद्ध शिक्षण संस्थान –
- लोकभारती विश्वविद्यालय, सनोसरा
- प्रमुखस्वामी साइंस एंड एच.डी. पटेल आर्ट्स कॉलेज, कडी
- लोकनिकेतन महाविद्यालय, रतनपुर
- ग्रामसेवा महाविद्यालय, ग्रामभारती अमरपुर
- वनसेवा महाविद्यालय, बिलपूडी, धरमपुर
- समाजसेवा महाविद्यालय, गांधी विद्यापीठ, वेदची
- वर्ष में 1-2 बार पशुपालन व चिकित्सा संबंधित शिविरों का आयोजन किया जाता है
- व्यक्तित्व निर्माण व जीवनशैली से संबंधित शिविरों का आयोजन भी हमारे यहां होता रहता है |
इस प्रकार वर्ष 2010 में संस्था की स्थापना के बाद से हमने हजारों लोगों को ग्राम स्वावलंबन व परंपरागत जीवन शैली संबंधी विभिन्न विषयों में प्रशिक्षित किया है व उनके साथ अपने अच्छे-बुरे अनुभव साझा किए हैं |
हमारे यहाँ से प्रशिक्षण प्राप्त कई लोग आंशिक रूप से व कई लोग पूर्णकालिक रूप से प्राकृतिक कृषि कर रहे हैं, कई लोग गौ पालन में संलग्न हैं तथा कई प्राकृतिक कृषि व गौ पालन को आधार बनाकर व्यक्तिगत तौर पर या संगठित होकर ग्रामउद्योग चला रहे हैं |
इस प्रकार प्रशिक्षण के माध्यम से हमने जो प्रयास किए हैं उसका सकारात्मक प्रभाव समाज में देखने को मिल रहा है |