प्राकृतिक कृषि 

गौ आधारित प्रकृतिक कृषि श्री रामकृष्ण ट्रस्ट के कार्यों का एक महत्वपूर्ण आयाम है | वर्ष 2001 से हम प्रकृतिक कृषि व इससे संबंधित अनुसंधान व विकास कार्य में संलग्न हैं | वर्तमान में ट्रस्ट द्वारा कुल 100 एकड़ भूमि पर मौसम के अनुसार सब्जी, अनाज, मसाला, तिलहन, चारा व बागवानी फसलों की प्राकृतिक कृषि की जाती है |

प्राकृतिक कृषि के संदर्भ में ट्रस्ट का दृष्टिकोण है कि कृषि को समृद्ध बनाने के लिए कृषि संबंधी हमारी हजारों वर्ष पुरानी परंपरागत व्यवस्था को पुनर्जीवित करना आवश्यक है | आज अधिकतर किसान खेतों में रासायनों का प्रयोग कर रहे हैं | इसके परिणामस्वरुप धरती बंजर होती जा रही है और इससे भूमि की उत्पादकता कम हो रही है | ट्रस्ट का उद्देश्य है कि किसान खेतों में यूरिया, डीएपी और कीटनाशकों के रूप में विष का उपयोग ना कर अपनी परंपरागत प्राकृतिक कृषि व्यवस्था को समझें |

इस दृष्टि से ट्रस्ट गोबर, गौमूत्र, छाछ, भस्म, विभिन्न वनस्पतियों आदि से प्राकृतिक खादों व कीटनाशकों का निर्माण करता है | साथ ही ट्रस्ट खेतों में इनका परीक्षण तथा डॉक्यूमेंटेशन भी करता है |

ट्रस्ट के द्वारा वर्त्तमान में हरी खाद (Green Manure), कंपोस्ट, सुपर कम्पोस्ट, जीवामृत, घन जीवामृत, वर्मीवाश, छाछामृत तथा आक, ग्लिरिसिडिया, केंचुए व शैवाल का प्रवाही खाद, प्रोम, भूमि सुधार खाद, गौ सींग खाद (BD 500 व BD 501), गौ समाधी खाद. गौ कृपामृत, गौ के बाड़े का खाद्य, गोबर गैस स्लरी खाद, गौ धारामृत आदि खादों का निर्माण व उपयोग किया जा रहा है |

इसी प्रकार ट्रस्ट के द्वारा देशी – प्राकृतिक तरीके से कीट नियंत्रण के लिए नीमास्त्र, ब्रह्मास्त्र व अग्नियास्त्र नाम के कीटनाशकों का निर्माण व उपयोग किया जा रहा है |

प्राकृतिक खाद का प्रमाणन

हमारा प्रयास रहता है कि श्री रामकृष्ण ट्रस्ट द्वारा जो भी प्राकृतिक खाद्य (Manure) विकसित किये जा रहे हैं उसका वैज्ञानिक प्रमाणन हो | इसके लिए कच्छ विश्वविद्यालय व कृषि विज्ञान केंद्र, कुकमा के सहयोग से प्रयोगशाला व फील्ड ट्रायल के माध्यम से हमारे प्राकृतिक खाद्य का वैज्ञानिक प्रमाणन किया जाता है |

श्री रामकृष्ण ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी श्री मनोज भाई सोलंकी भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के गवर्निंग बॉडी के सदस्य भी हैं | अतः हम प्राकृतिक कृषि संबंधी अपने अनुभवों को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद  (ICAR) के साथ भी साझा करते हैं |

हमारे यहां सॉइल टेस्टिंग लैब जैसी आधुनिक सुविधाएं भी उपलब्ध हैं | इससे मिट्टी की ठीक-ठीक स्थिति का पता चलता है |

गौ – आधारित प्राकृतिक कृषि प्रशिक्षण शिविर

श्री रामकृष्ण ट्रस्ट द्वारा वर्ष 2011 से देशी गौ – आधारित प्राकृतिक कृषि पर तीन दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया जा रहा है | अभी तक इस तरह के 101 शिविर हो चुके हैं | इस प्रशिक्षण शिविर में श्री रामकृष्ण ट्रस्ट के अनुभवों के साथ – साथ प्राकृतिक कृषि करने वाले सफल किसानों के अनुभवों को भी शामिल किया जाता है | इसके अलावा वैज्ञानिक परीक्षण संबंधित तथ्य व अवधारणाएं रखने के लिए कृषि वैज्ञानिकों, इस क्षेत्र में कार्यरत विश्वविद्यालय के शिक्षकों व सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी इस शिविर में आमंत्रित किया जाता है | इस प्रकार इस प्रशिक्षण शिविर में प्राकृतिक खाद व कीटनाशकों के निर्माण व उपयोग संबंधी व्यावहारिक प्रशिक्षणों के अलावा कृषि संबंधी वैज्ञानिक परीक्षणों, मिट्टी को समृद्ध करने, मार्केटिंग, फसल रोग को पहचानने व इससे निपटने के तरीकों जैसे मुद्दों पर चर्चा की जाती है | अतः हमारा प्रयास रहता है कि इस प्रशिक्षण शिविर में अलग-अलग पृष्ठभूमि व विशेषज्ञता वाले प्रशिक्षकों के माध्यम से प्राकृतिक कृषि व इसकी सफलता पर एक प्राथमिक समझ विकसित की जाए |

धरती पुत्र योजना

श्री रामकृष्ण ट्रस्ट ने प्राकृतिक कृषि क्षेत्र में जो अनुभव प्राप्त किये हैं इससे समाज को लाभान्वित करने के लिए हमारे द्वारा ‘धरती पुत्र योजना’ चलाई जा रही है | इसके तहत हम आसपास के गांव के किसानों को प्राकृतिक कृषि के लिए प्रोत्साहित करते हैं तथा उन्हें आधा एकड़ भूमि पर प्राकृतिक कृषि ट्रायल के लिए विभिन्न तकनीकि सहायता देते हैं जैसे प्राकृतिक खाद बनाने का प्रशिक्षण व मार्गदर्शन, मार्केटिंग सपोर्ट, यदि इनपुट की जरूरत हो तो जिन इनपुट का हम निर्माण कर रहे हैं उसे किसानों को उपलब्ध करवाने का प्रयास आदि | इसके अलावा जब भी आवश्यक हो हम किसानों के खेतों पर जाकर उनका मार्गदर्शन भी करते हैं |

कृषि उत्पाद मूल्यवर्धन केंद्र

ट्रस्ट परिसर में एक कृषि उत्पाद मूल्यवर्धन केंद्र बनाया गया है जिसमें प्राकृतिक कृषि उत्पादों का मूल्यवर्धन (Value Addition) किया जाता है | इसके लिए हमारे यहां अनाजों, दलों की सफाई, ग्रेडिंग, साइजिंग, पिसाई, पैकिंग आदि कार्य मशीनों की सहायता से करके उसकी वैल्यू कैसे बढ़ा सकते हैं उसका एक मॉडल विकसित किया गया है | हमारा प्रयास है कि मूल्यवर्धन के इन साधनों का लाभ सभी किसानों को मिले | इसके लिए नो प्रॉफिट – नो लॉस के तहत हम किसानों की उपज का भी मूल्यवर्धन करते हैं | किसान अपना श्रम देकर निःशुल्क रूप से इस सुविधा का लाभ उठा सकते हैं |

कृषि उत्पाद विपणन

ट्रस्ट के कृषि उत्पादों का उपयोग ट्रस्टी के परिवार के निजी उपयोग के लिए किया जाता है |

साथ ही अतिरिक्त उत्पादन का विक्रय ट्रस्ट के द्वारा कुकमा के अपने स्वदेशी मॉल तथा माधापर के अपने दुकान के माध्यम से किया जाता है | इस प्रकार ट्रस्ट पिछले 1516 वर्षों से ग्राहकों से प्रत्यक्ष संबंध स्थापित कर कृषि उत्पाद विपणन के इस ‘स्वाबलंबी मॉडल’ पर कार्य कर रहा है |

गौशाला

प्राकृतिक कृषि के जिस मॉडल पर हम कार्य कर रहे हैं उसका आधार देशी नस्ल की गौ माता है | संस्था के मुख्य ट्रस्टी श्री मनोज भाई सोलंकी का मानना है कि देशी गाय आधारित प्राकृतिक कृषि विश्व की सभी समस्याओं से बाहर आने का एकमात्र मार्ग है | अतः गौ-वंश का संरक्षण – संवर्धन ट्रस्ट की एक महत्वपूर्ण गतिविधि है | ट्रस्ट की गौशाला में 300 कांकरेज नस्ल के गौवंश का पालन – पोषण किया जा रहा है | गौ-माता के महत्व को रेखांकित करते हुए डॉ मनोज भाई का कहना है कि यदि किसी कारण धरती बंजर हो जाए तो गौ माता ही पुनः धरती को ‘नंदन वन’ अर्थात स्वर्गमय व हरा भरा बना सकती है |

सामूहिक प्रयास

देश-विदेश में प्राकृतिक कृषि संबंधी कई प्रयोग व्यक्तिगत व संस्थागत स्तर पर किए जा रहे हैं | ऐसे प्रयोगों का ट्रायल भी हमारे संस्था में करने की व्यवस्था है ताकि इस क्षेत्र में किये जा रहे बिखरे प्रयासों का एक सामूहिक परिणाम हमें – प्राकृतिक कृषि के विकास के रूप में प्राप्त हो |

इसके अलावा मिश्रित फसल (Mixed Cropping), बीजों के संरक्षण, किचन गार्डन, औषधीय वृक्षों का रोपण, बागायत (Horticulture) व ट्रस्ट परिसर में ‘प्राकृतिक नेट हाउस’ व अन्य वन मॉडल विकसित करना, औषधीय वृक्षों, फलदार वृक्षों, पक्षियों को संरक्षण देने वाले, मेड़ों के ऊपर लगाए जाने वाले पेड़ों आदि की किस्मों का संरक्षण व विकास हमारे कुछ अन्य कार्य हैं | इन क्षेत्रों में अब तक हमारे द्वारा जो भी प्रयास हुए हैं उसका लाभ सबको मिले इसके लिए भी हम प्रयासरत हैं |

खेती प्रकृति की रचना व व्यवस्था का एक अंग है | जीवन ईश्वर की देन है इसलिए जीवन को चलाने का साधन प्रकृति उपलब्ध करवाती है | इसमें लाखों प्रकार के जीवों के जीवन की व्यवस्था है जो एक-दूसरे पर परस्पर निर्भर हैं अर्थात परस्परावलंबी हैं |

किसान यदि प्रकृति की इस व्यवस्था को समझ ले तो खेत को ‘नंदन वन’ बना सकता है जहां मिट्टी में रहने वाले करोड़ों जीवों का संरक्षण व उपयोग तो हो ही सकता है, संपूर्ण समष्टि पोषित हो सकती है |

आज पुनः प्रकृति व ‘वास्तविक विज्ञान’ को केंद्र में रखकर कृषि कार्य करने की आवश्यकता है | साथ ही किसानों को अतिरिक्त धन सृजन के लिए कृषि कार्य में खाद्य प्रसंस्करण (Food Processing) व विपणन (Marketing) जैसे फसल कटाई के बाद के अर्थात पोस्ट हार्वेस्टिंग आयामों को जोड़ने की आवश्यकता है |

वास्तविक कृषि मनुष्य नहीं करता बल्कि प्रकृति करती है | मनुष्य को तो केवल प्रकृति की इस प्रक्रिया में सहयोग करने की आवश्यकता है |

ट्रस्ट इसी अवधारणा पर व्यावहारिक प्रयोग करने व इसे स्थापित करने के एक हॉलिस्टिक अप्रोच पर कार्य कर रहा है |